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बहुत...

मत पूछ मुझको हुआ क्यों मिलके दर्द बहुत.  जख्म खुले थे ,और वो था नमकीन बहुत.

तड़फते होंठ मेरे...

तड़फते होंठ मेरे और तरसती प्यास तेरी  क्या इतना काफी नहीं इश्क़ होने के लिए

हम मिल जाते अगर

चित्र
ख्यालो ख्यालो मे  एक ख्याल आया , हम मिल जाते अगर। जमीं से फलक  सब  कुछ था अपना, हम मिल जाते अगर। ना  चैन मिलता लबो  को हमारे ना फिर तरसता यूं  दिल , इंतहा से मोहब्बत की जाते  गुजर , हम मिल जाते अगर। तुम्हे  वादियों  मे दिल की घुमाता, पलको पे  रखता बिठाकर , साँसों से तेरी  मै आता जाता , हम मिल जाते अगर। बाँहों  मे तुझको रखता समेटे ,बिखरने  ना देता कभी, खवाबो  को तेरे चुन चुन  सजाता हम मिल जाते अगर। 

मोहब्बत मुझसे करके तुम

मोहब्बत मुझसे करके तुम ,जुदा  क्युँ मुझसे हो बैठे, किसी के दिल में चाहत की, शमा क्युँ जला बैठे। किसी का दिल रोया हैं, किसी के अश्क तड़फे हैं, बेवफाई की ये सब रस्मे ,अदा  क्युँ आप कर बैठे। 
उसके यकीन में शामिल शायद था , शक मेरी वफाओ पे उसको शायद था. एक हसीं कल की तलाश थी उसको, खुदा ने बक्शा उसे जो उसका सपना शायद था. 
कोई तड़फ रहा हैं मुझमे , कोई बिखर सा रहा हैं। जबकि आज तेरी यादे हैं, तू भी हैं और मैं भी हूँ। 

मोहब्बत की मय्यत

इक आखिरी बार मिल और मुझे कत्ल कर दे। मिलकर बिछड़ने का बन्द ये सिलसिला कर दे। मय्यत तो मोहब्बत की अब उठ ही चुकी हैं  , तू आ , आकर अपने हाथो से इसे दफन कर दे। दफन करके चले जाना , पलट कर देखना भी मत बाकि न रहे कोई भी , दूर हर एक बहम कर दे। आगोश मे ले ले खुदा , दे पनाह मुझको "दीपक " गुजार दे ये शब ए गम , खुशियों की नई सहर कर दे.  
ढूँढा तो पाया मुझ में भी एक ऐब हैं , दूर मुझसे बहुत धोखा और फरेब हैं। दिल लिया हैं तो जरा प्यार से रखना , बड़ा मासूम सा दिल ये अपना साहेब हैं।  
बैठो    मेरे  सामने   तुम ,  बेपर्दा    होके   जरा। सीने से तेरे निकलने लगेगा , दिल जो, हैं ये तेरा।
मेरी बदनसीबी की आज फिर छोड़ दिया उसको। दिल से अलग कर दिया फिर ,दिल का टुकड़ा मैंने। 

क्या कहूँ कैसे कहूँ

दिल के जज्बातो को उससे क्या कहूँ कैसे कहूँ। हैं मोहब्बत उससे कितनी क्या कहूँ कैसे कहूँ। सैलाब अरमानो का निकला आँखे चीरकर मेरी, इससे ज्यादा हाले दिल अब क्या कहूँ कैसे कहूँ। वादे करके तोड़ देना फितरत हैं मेरे यार की , आदतों को उसकी अब क्या कहूँ कैसे कहूँ। कतरा कतरा दिल का मेरे कातिल के सजदे मैं हैं जालिम से मोहब्बत को अपनी क्या कहूँ कैसे कहूँ। 

समंदर

किसने कितनी वफ़ा की आज ,चलो समझ  लेते हैं ऐसा करते हैं एक दूजे से ,चलो दिल बदल लेते हैं। सुना  हैं  ये  इश्क़  एक  समंदर  हैं  आग  का , अगर तू कहे तो  इससे, डूब के निकल लेते हैं।

मेरी वफ़ा

वो सगा   अपनी   मजबूरियों  का  था, मेरी   वफ़ा   मेरी   बेचैनिया    थी। उसने सपने भी खुली आँखों से देखे , मुझे ख्वाबो मैं भी आती कहानियां थी। उसको साफ़ जिंदगी के फलसफे थे , मेरी जिंदगी नज्म , गजल और रुबाईयाँ थी। उसने ढूँढ ही लिया एक शख्स मुक्कमल, हम में शामिल जहां की बुराइयां थी।