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जुलाई 5, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वफा..............

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इस वस्ले ए शाम की कभी सुबह ना हो . तू मुझसे ऐसे मिल कि कभी जुदा ना हो. जीस्त भी लुटा देते है चाहत में लोग जो , चाहत की साथ उनके कभी दगा ना हो . ओर तो कुछ नही बस इतना चाहते हैं , दामन से तेरे खुशिया कभी खफा ना हो . तूने वफा न की हमसे तो क्या हुआ ? पर चाहती है जिसे तू वो बेवफा ना हो . जब भी जले घर में तेरे चाहत के "दीपक" , हम दुआ करेंगे कि दूर-२ तक हवा ना हो .