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अप्रैल 28, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रिश्ता तुमसे............

मैं जानता हूँ  जो वो छुपाती है हाथ में . शादी की मेहंदी उसने लगाई है हाथ में . अरे कब से रचने लगी है इतना गहरा मेहँदी , मेरे दिल का खून तूने लगाया है हाथ में . वो मुझसे पूछती है मेरा रिश्ता क्या है तुझसे , अरे मेरी किस्मत की लकीरे है तेरे हाथ में. वो कहती हैं वो किसी और की है , अरे कभी चेहरा तो देख आइना लेके हाथ में . बयाँ कर नही सकता ओर मैं मुहब्बत अपनी , बस दिल निकाल के रख दूंगा तेरे हाथ में.

संगदिल

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                                                                   मेरे मुक़द्दर  को    मंजूर   मेरा  जीना  था , वर्ना  तो   इरादा   उसका बड़ा कमीना था . एक उसी पर दिल क्यों  फ़िदा हुआ मेरा , जिसकी बेवफाई  पर  शराफत  का   शामियाना   था . मैंने चुन चुन के उसे अपनी खुशिया देदी , फिर क्यों मेरी ख्ह्वाईशो को गमे अश्को में भीग जाना था .

वो लडकी

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एक चेहरा इन आँखों को अच्छा सा लगा . उस अजनबी से बाते करना अच्छा सा लगा . वो उसकी बिखरी जुल्फे, वो उसके कान की बाली , वो उसका अंगड़ाईया लेना अच्छा सा लगा . वो उसके ओंठ गुलाबी ,वो उसकी झील सी आँखे , वो उसका हर बात पे मुस्करा देना अच्छा सा लगा .  उसकी नजरो का गिरना उठना,ओंठो का फडकना ,                                                         कांधे से दुप्पटे का सरकना अच्छा सा लगा.                                                       वो उसका दौडकर आना सीने से लिपट जाना ,                                                        शानो पे सर टिका देना अच्छा सा लगा .