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मई 26, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

..........................बहुत हैं

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जानते हैं कि आप खूबसुरत बहुत हैं . लेकिन आपसे भी खूबसुरत बहुत हैं . मुश्किलो से मिलता है इंसान कोई . हाँ इंसानों की शक्ल में हैवान बहुत हैं . क्या जरूरत है तलवार उठाने की ? कत्ल के लिए दो अलफ़ाज़ बहुत हैं . फ़िज़ूल वक़्त गुजारना क्यूँ नमाज में ? किसी रोते हुए बच्चे को हँसाना  बहुत है .  ज्यादा की हवस नही रखिये दिमाग में . आदमी को झोपड़े का आशियाँ बहुत है . कुत्तो से सीख लीजिये वफा की अदा , इन आदमियों से कुत्ते बेहतर बहुत है . मैं नही मांगता घर में चाँद की चांदनी  , मुझे तो एक "दीपक" की रौशनी बहुत है