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मोहब्बत की मय्यत

इक आखिरी बार मिल और मुझे कत्ल कर दे। मिलकर बिछड़ने का बन्द ये सिलसिला कर दे। मय्यत तो मोहब्बत की अब उठ ही चुकी हैं  , तू आ , आकर अपने हाथो से इसे दफन कर दे। दफन करके चले जाना , पलट कर देखना भी मत बाकि न रहे कोई भी , दूर हर एक बहम कर दे। आगोश मे ले ले खुदा , दे पनाह मुझको "दीपक " गुजार दे ये शब ए गम , खुशियों की नई सहर कर दे.