किसने कितनी वफ़ा की आज ,चलो समझ लेते हैं ऐसा करते हैं एक दूजे से ,चलो दिल बदल लेते हैं। सुना हैं ये इश्क़ एक समंदर हैं आग का , अगर तू कहे तो इससे, डूब के निकल लेते हैं।
वो सगा अपनी मजबूरियों का था, मेरी वफ़ा मेरी बेचैनिया थी। उसने सपने भी खुली आँखों से देखे , मुझे ख्वाबो मैं भी आती कहानियां थी। उसको साफ़ जिंदगी के फलसफे थे , मेरी जिंदगी नज्म , गजल और रुबाईयाँ थी। उसने ढूँढ ही लिया एक शख्स मुक्कमल, हम में शामिल जहां की बुराइयां थी।