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जनवरी 23, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मेरी वफ़ा

वो सगा   अपनी   मजबूरियों  का  था, मेरी   वफ़ा   मेरी   बेचैनिया    थी। उसने सपने भी खुली आँखों से देखे , मुझे ख्वाबो मैं भी आती कहानियां थी। उसको साफ़ जिंदगी के फलसफे थे , मेरी जिंदगी नज्म , गजल और रुबाईयाँ थी। उसने ढूँढ ही लिया एक शख्स मुक्कमल, हम में शामिल जहां की बुराइयां थी।