संदेश

मार्च, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मोहब्बत की मय्यत

इक आखिरी बार मिल और मुझे कत्ल कर दे। मिलकर बिछड़ने का बन्द ये सिलसिला कर दे। मय्यत तो मोहब्बत की अब उठ ही चुकी हैं  , तू आ , आकर अपने हाथो से इसे दफन कर दे। दफन करके चले जाना , पलट कर देखना भी मत बाकि न रहे कोई भी , दूर हर एक बहम कर दे। आगोश मे ले ले खुदा , दे पनाह मुझको "दीपक " गुजार दे ये शब ए गम , खुशियों की नई सहर कर दे.  
ढूँढा तो पाया मुझ में भी एक ऐब हैं , दूर मुझसे बहुत धोखा और फरेब हैं। दिल लिया हैं तो जरा प्यार से रखना , बड़ा मासूम सा दिल ये अपना साहेब हैं।  
बैठो    मेरे  सामने   तुम ,  बेपर्दा    होके   जरा। सीने से तेरे निकलने लगेगा , दिल जो, हैं ये तेरा।
मेरी बदनसीबी की आज फिर छोड़ दिया उसको। दिल से अलग कर दिया फिर ,दिल का टुकड़ा मैंने। 

क्या कहूँ कैसे कहूँ

दिल के जज्बातो को उससे क्या कहूँ कैसे कहूँ। हैं मोहब्बत उससे कितनी क्या कहूँ कैसे कहूँ। सैलाब अरमानो का निकला आँखे चीरकर मेरी, इससे ज्यादा हाले दिल अब क्या कहूँ कैसे कहूँ। वादे करके तोड़ देना फितरत हैं मेरे यार की , आदतों को उसकी अब क्या कहूँ कैसे कहूँ। कतरा कतरा दिल का मेरे कातिल के सजदे मैं हैं जालिम से मोहब्बत को अपनी क्या कहूँ कैसे कहूँ।