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आखिर क्यूँ ?

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दिल की तन्हा दीवारे सिसकती हैं . जब भी कोई धडकन धडकती हैं . जन्म लेती हैं जब बेटिया , क्यू माँ की भी आँखे टपकती हैं? तंग हो गये हैं औलादों के दिल, जिन्दगी माँ-बाप की खटकती हैं गद्दारों को मिल रहे इनाम बहादुरी कही डर कर दुबकती हैं बेईमानो की कट रही हैं चाँदी ईमानदारी कही कोने में सुबकती हैं झूठ को इस कद्र मिली शोहरत कि सच्चाई वीरानो में भटकती हैं खुदकुशी बन गयी खुशी लोगो की. जिन्दगी जीने को सर पटकती हैं महंगाई की मार हैं मजदूरों पर औलाद सूखी रोटियों को तरसती हैं.