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अक्तूबर 17, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वो बिछड़ता चला गया..........................

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वो उतरा मेरी रूह मे ,और उतरता चला गया , मैं खुद ही मे दोस्तों , बिखरता चला गया . इस पहाड़ सी जिन्दगी मे ,वो लम्हा बस अपना , उसके आगोश मे  जब ,मैं पिघलता चला गया . हर साँस मे वो थी ,हर धडकन मे वो थी , लाख रोका उसे पर वो बिछड़ता चला गया . सब रस्मे ,सब कसमे ,निभाई इश्क मे मैंने , पर अकड मे वो अपनी ,झगड़ता चला गया . और क्या ?जिन्दगी के आखिरी लम्हे में दिल "दीपक" , लेकर उसी का नाम दुनिया से धडकता चला गया .