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मई 5, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कोई बात नही ...

मुझको नही मिले तुम तो दोस्त क्या हुआ ? इस जमीं ने कब भला वो आसमां छुआ ? जिन्दगी में न आ सकू इसलिए ये कीजिये ठोकर से हटा दीजिये ये पत्थर पड़ा हुआ . तुमसे वफा की हमने कसमे है चंद खाई . बेवफाई से कभी इंसान बड़ा हुआ ? मुझको खबर है दिल में तेरे रोशन है और कोई. रखते है लोग घर में कहाँ दीपक बुझा हुआ ?                                                                                       

वो दोस्त कौन थी ?

पहली नज़र में बन गयी , वो दोस्त कौन थी ? दिल में जो उतर गयी , वो दोस्त कौन थी ? बाते वफा की यूँ तो करती थी बड़ी बड़ी , वादों से मुकर गयी ,वो दोस्त कौन थी ? चुपचाप जिसकी सादगी आँखों के रास्ते घर जिगर में कर गयी ,वो दोस्त कौन थी ? मासूम सा ख्वाब बन मेरे दिल पे जो मोतियों की बूंदों सी बिखर गयी वो दोस्त कौन थी ? बड़ी बेरुखी से मेरे रख के जो पावँ दिल पे , हँस के गुजर गयी वो दोस्त कौन थी ? जिसकी वजह से दीपक एक जिन्दा आदमी की , अरे खुद कब्र गयी वो दोस्त कौन थी ?

हकीकत...

सभी हमदर्द है मेरे ,हर कोई दोस्त बनता है . हाले दिल मगर मेरा कहां कोई समझता  है. मुझे दो बात समझाकर,हो जाते है सब फारिग . मगर तन्हाई में तन्हा मेरा ही दिल सिसकता हैं .                                                     poet.tyagi.poem@gmail.com