अंदाज़ तू उसकी जरा नजर के देख . फिर जख्मो को तू मेरे जिगर के देख . दर्द का एहसास तुझे जब होगा , जख्मो पे जरा अपने नमक रख के देख . गम का अगर तुझको तस्सवुर नही हुआ, तो किसी बेवफा से प्यार कर के देख . रूह को तेरी भी चैन आ जायेगा , एक बार उसे बाहों में भर के देख . बहुत मजा है किसी पे मरने में . जीना है ? तो किसी पे मर के देख
दिल बार बार करता है ,दिल बार बार है कहता . अरमानो को गूंथकर शब्दों को पिरोकर एक लिख दू कविता. जिसमे एक पिता हैं जो प्यार करता है सुबह के उगते सूरज सा कर्तव्य में झुलसता है दोपहर के सूरज सा और जिसका मजबूर बुढ़ापा हो शाम का ढलता सविता . अरमानो को गूंथकर ................ जिसमे एक माँ हो , जिसका ह्रदय होता है निर्मल प्यार बरसता है जिसमे बनके बादल. लबो पे जिसके शिकायत नही वो प्यारी पावन माता . अरमानो को गूंथकर ................ जिसमे एक बहन है जो , शरारते करती है अक्सर पीट देती है पकडकर कान खीचकर लाल कर देती है और फिर बड़ी होकर ,किसी की होकर ,तोड़ लेती है रिश्ता अरमानो को गूंथकर ................ जिसमे एक भाई है . जिसके साथ पढ़ते है लड़ते है , छोटी २ बातो पर खूब झगड़ते है , और फिर बिछड़ जाते है किनारों की तरह ,बेचारी
वो चला गया तो लौट के वापस नहीं आया। मेरे साथ रहा था जो कभी बनके साया। जिन्हे एहसास कराया उल्फत का हमने , वो कहते हैं की हमे ढंग से जताना नहीं आया। साँसों से, आँखों से , इशारो से बयाँ की, जालिम को ना जाने क्यूँ समझ नहीं आया। इश्क़ तो ऐसा था कि एक मिसाल बनता , पर ना मुझे मिला ना उसी के काम आया। उतरते कैसे हैं दिल मे मालूम था मुझे, पर दिल से किसी को जुदा ना करना आया।
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